कोकिला-व्रत-कथा Options

शिवजी की पूजा में सफेद और लाल पुष्‍प के अलावा बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूर्वा, अष्‍टगंध, धूप और दीपक रखें। इन सभी वस्‍तुओं से पूजा करने के बाद व्रत का संकल्‍प लें। आप चाहें तो निराहार व्रत रहें और समार्थ्‍य नहीं है तो फलाहार करके भी व्रत रहा जा सकता है।

अपने वास्तविक कार्यों पर गंभीर बने - प्रेरक कहानी

वह शिव से हठ करके दक्ष के यज्ञ पर जाकर पाती हैं, कि उनके पिता ने उन्हें पूर्ण रुप से तिरस्कृत किया है। दक्ष केवल सती का ही नही अपितु भगवान शिव का भी अनादर करते हैं उन्हें अपशब्द कहते हैं। सती अपने पति के इस अपमान को सह नही पाती हैं और उसी यज्ञ की अग्नि में कूद जाती हैं। सती अपनी देह का त्याग कर देती हैं।

देवी सती को जब अपने पिता के इस कार्य का बोध होता है तो वह उस यज्ञ में जाने के लिए तैयार होती हैं भगवान शिव उन्हें इस बात की इजाज़त नहीं देते, पर देवी सती की जिद के आगे हार जाते हैं और उन्हें जाने देते हैं। सती यज्ञ पर जाकर जब अपने पति का स्थान नहीं पाती तो अपने पिता दक्ष से इस बारे में पूछती हैं लेकिन दक्ष अपनी पुत्री सती और शिव का अपमान करते हैं। शिव के प्रति अपमान के शब्दों को वह सहन नहीं कर पाती हैं और उस यज्ञ के हवन कुंड में अपनी देह का त्याग कर देती हैं।

महाप्रभु जगन्नाथ को कलियुग का भगवान भी कहते है. पुरी (उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है.

कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण कोकिला-व्रत-कथा में मिलता है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।

विधि-विधान से भगवान भोलेनाथ को भांग, धतूरा, बेलपत्र, और फल अर्पित करें।

सती शिव की बात से सहमत नहीं होती हैं और जिद्द करके अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं।

दिल्ली के प्रसिद्ध हनुमान बालाजी मंदिर

व्रत करने वाले को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्‍नान करना चाहिए। इस दिन गंगा स्‍नान करें तो सबसे अच्‍छा होता है।

संत अनंतकृष्ण बाबा जी के पास एक लड़का सत्संग सुनने के लिए आया करता था। संत से प्रभावित होकर बालक द्वारा दीक्षा के लिए प्रार्थना करने..

राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न भाइयों का प्यार

इस व्रत को करने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

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